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चलती है संग संग हर क़दम उजाले में, अँधेरे में कहीं

 चलती है संग संग हर क़दम उजाले में,
अँधेरे में कहीं गुम हो जाती है..!

आस्तीन में छुपी साँप सी जैसे,
ख़ुद को मुश्किलों में पाती है..!

क्या है आख़िर ऐसा क्यों,
उजाले को ही भाती है..!

अँधेरे में कर तन्हा हमें,
क्या ये आख़िर चाहती है..!

परछाई है या है कायर साथी,
कभी आती कभी छोड़ जाती है..!

ईमान की थोड़ी कच्ची है,
कहाँ हरदम साथ निभाती है..!

ढूँढ़ती है पल रौशनी की राह,
और अँधेरे में पछताती है..!

©SHIVA KANT
  #parchhayi