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राह भटक मत जाना साथी ,अभी दूर तक जाना है यह भीड़ न

राह भटक मत जाना साथी ,अभी दूर तक जाना है
यह भीड़ नहीं कुछ देती है,नहीं इसका ठौर ठिकाना है।

यह कलरव करती भीड़ तुम्हें ,अपने पथ से भटका देगी
सागर संगम से पहले ही ,दो -आबों में उलझा देगी ,

जीवन के उस दोराहे पर,सुपथ नहीं तुम चुन पाओगे 
ना फिर उस अनुपम शैली को,मूल काव्य में ला पाओगे 

चक्रव्यूह सी उलझी राहों में ,स्वप्न सदृश्य से खो जाओगे 
भीड़ किधर से आई किधर गई , खुद को भी नहीं तुम समझ पाओगे।। भीड़ का किरदार
राह भटक मत जाना साथी ,अभी दूर तक जाना है
यह भीड़ नहीं कुछ देती है,नहीं इसका ठौर ठिकाना है।

यह कलरव करती भीड़ तुम्हें ,अपने पथ से भटका देगी
सागर संगम से पहले ही ,दो -आबों में उलझा देगी ,

जीवन के उस दोराहे पर,सुपथ नहीं तुम चुन पाओगे 
ना फिर उस अनुपम शैली को,मूल काव्य में ला पाओगे 

चक्रव्यूह सी उलझी राहों में ,स्वप्न सदृश्य से खो जाओगे 
भीड़ किधर से आई किधर गई , खुद को भी नहीं तुम समझ पाओगे।। भीड़ का किरदार

भीड़ का किरदार #कविता