होठों पर आग थी और किताबों पर थी टकटकी हम यही करते रहे और एक रात फिर गुजर गई नींद आयी तो अफसोस ने किवाड़ खटखटाए स्लेट पर लिखे टारगेट आज फिर पूरे नही हुए जानता था ,सपनों की कीमत चुकानी पड़ती है पर दोस्त, ये जानना और जीने में भारी विसंगति है आखिर प्रयास कर इसी जीने को सीखना है मुझे निष्क्रियता से सक्रियता की ओर चल पड़ना है मुझे प्रयास में हूँ कि कभी ये कहानियां किताब बन जाएं वर्ना हर रोज किस्सों की चिताएँ तो जल ही रहीं #lockdown3 #whatiamdoing #Puzzled