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उसे अपने गुनाहों को अभी धोना नहीं आता। वो पत्थर तो

उसे अपने गुनाहों को अभी धोना नहीं आता।
वो पत्थर तो नहीं लेकिन उसे रोना नहीं आता।।

اسے اپنے گناہوں کو ابھی دھونا نہیں آتا۔                        
وہ پتھر تو نہیں لیکن اسے رونا نہیں آتا۔                        

कि सब कुछ पाने की चाहत सुकूं भी छीन लेती है
शिकस्ता दिल वो रहते हैं जिन्हें खोना नहीं आता।।

کہ سب کچھ پانے کی چاہت سکوں بھی چھین لیتی ہے۔        
شکستہ دل وہ رہتے ہیں جنھیں کھونا نہیں آتا۔                


त'अस्सुब दिल में हो तो सच कहां दिखता है आंखों से
हक़ीक़त से उसे फिर रूबरू होना नहीं आता।।

تعصب دل میں ہو تو سچ کہا دکھتا ہے آنکھوں سے۔          
حقیقت سے اسے پھر روبرو ہونا نہیں آتا۔                        

किसी भी फ़न में कम तुमसे हुनर हम भी नहीं रखते,
तुम्हारी तर'ह बस सबको ज़हर बोना नहीं आता।।

کسی بھی فن میں تم سے کم ہنر ہم بھی نہیں رکھتے۔       
تمہاری طرح بس سب کو زہر بونا نہیں آتا۔                      

कहां तक ख़्वाबों की ताबीर ढूंढ़ूं फ़ानी दुनिया में,
मेरी आंखों को ख़्वाबों से जुदा होना नहीं आता।।

کہاں تک خوابوں کی تعبیر ڈھونڈو فانی دنیا میں            
میری آنکھوں کو خوابوں سے جدا ہونا نہیں آتا۔

©Aliem U. Khan #PoetryMonth #nojotopoetry #Aliem #urdu #urdupoetry #shikasta_dil #faani_duniya #zaher_bona #urduhindi_poetry #gunaah