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तुम बिखेर लो राहों में कांटे, मैं उनपे फूल समझकर च

तुम बिखेर लो राहों में कांटे, मैं उनपे फूल समझकर चल लूंगा,
तुम कर दो घोर अंधेरा, मैं रात को जुगनू बनकर निकल लूंगा,

मुझे नही चाहिए झूठा सहारा किसीका, मैं खुद संभल लूंगा,
तुम छोड़ जाओं मुझे अकेला, मैं खुद अपनी दशा बदल लूंगा,

©पवन आर्य मैं सब कर लूंगा..
तुम बिखेर लो राहों में कांटे, मैं उनपे फूल समझकर चल लूंगा,
तुम कर दो घोर अंधेरा, मैं रात को जुगनू बनकर निकल लूंगा,

मुझे नही चाहिए झूठा सहारा किसीका, मैं खुद संभल लूंगा,
तुम छोड़ जाओं मुझे अकेला, मैं खुद अपनी दशा बदल लूंगा,

©पवन आर्य मैं सब कर लूंगा..