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लिखे थे ख़त कभी तुम्हें एहसासों की स्याही से अल्फ़ाज़

लिखे थे ख़त कभी तुम्हें
एहसासों की स्याही से
अल्फ़ाज़ों में लिपटे हुए
आरजुओं की आवाजाही पे
लफ़्ज़ों की नादान कोशिशें
की दिल, पिघल जाए
और हो मिलना,जैसे एक जान
धड़कनों की गवाही से

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