लक्ष्मी बहन एक तेज़ाब पीडिता द्वारा कहीं बात से पहली पंक्ति की शुरुआत करता हूँ, जो उनकी दृड़ संकल्प शक्ति कौ दर्शातीं हैं। तेज़ाब सुरत बिगाड़ सकती हैं, हमारी सीरत नहीं। तेज़ाब से तुमने मेरा जिस्म जलाया है, मेरा दृड़ विश्वास नहीं। हा ठुकराया था एकतरफा प्यार तेरा, क्या था मेरा ये अधिकार नहीं आँखों में हवस हाथों में तेज़ाब लिए, थे खड़े भरे बाजार, डाल तेज़ाब मेरे जिस्म को जलाया तुमने, हैवानीयत अपनी सरेआम दिखाया था। हा मैं लक्ष्मी हूँ, रुह जिन्दा हैं अभी, तेज़ाब से तुमने सुरत बिगाड़ा था, मेरी सीरत नहीं। क्या हस्र किया तेरे तेज़ाब ने जरा एक नज़र इस चेहरे को देख, और मर्द हैं तो पहले खुद पे डाल के देख। पढ़ जज़्बात बहन की मैं रातभर रोया ये सोच-सोचकर, हँसता रह गया वो, तो लानत हैं मुझे भाई होने पर, कैसे आज़ाद हैं वो बंदा, डाल तेज़ाब मेरे बहन का जिस्म जिसने जलाया था। ©फक्कड़ मिज़ाज अनपढ़ कवि सिन्टु तिवारी लक्ष्मी बहन एक तेज़ाब पीडिता द्वारा कहीं बात से पहली पंक्ति की शुरुआत करता हूँ, जो उनकी दृड़ संकल्प शक्ति कौ दर्शातीं हैं। तेज़ाब सुरत बिगाड़ सकती हैं, हमारी सीरत नहीं। तेज़ाब से तुमने मेरा जिस्म जलाया हैं, मेरा दृड़ विश्वास नहीं। हा ठुकराया था एकतरफा प्यार तेरा,