ख़्वाबों वाला इश्क़ ग़ज़ल रात भर ख़्वाबों में मैं चांँद में ढूंँढ़ा करती हूंँ तुम्हें। एक तेरे चाहत में ख़्वाब में सज संँवर रिझाती हूंँ तुम्हें।। मुमकिन ना हो उसको मुमकिन पाना है तुम्हें। ख़्वाब दरिया के किनारों को मिला कर साथ लाना है तुम्हें।। ख़्वाब सा है तुम और तुम्हारा इश्क़ कैसे कह दूंँ बेवफ़ा तुम्हें। अब तो आँखों में भी ख़्वाब हकीकत में सज रास्ते में देखते हैं तुम्हें।। यूंँ शरमा कर ख़्वाबों के आईने में देखती हूंँ तुम्हें। ख़्वाबों को सच कर हकीकत में पाना चाहती हूंँ तुम्हें।। #kkpc23 #कोराकाग़ज़ #collabwithकोराकाग़ज़ #विशेषप्रतियोगिता #similethoughts #ख़्वाबोंवालाइश्क़ #04 #ग़ज़ल