बादल घनघोर आये, अम्बर में छा गए। कड़की बिजली जोर से, खूब गरजे खूब बरसे, राजा तो मस्ती में सोये, रंक की नींद उड़ा गये।। टुटा सा घर रंक का, राजा का महल रहा। राजा मस्त पकौड़े में, रंक चिंताग्नि में जल रहा।। दिन धीरे धीरे बीत रहा, छत से टपकता पानी था। रंक जो ठहरा बेचारा, बनवा पाना बेमानी था।। पानी इस कदर बरसा, नदी नाले भर गए। चिंता से रंक हृदय, जल से भी जल गए।। टर टर करते दादुर, वर्षा गीत गा रहे थे। मानों कर्कश वाणी से, रंक को चिढ़ा रहे थे।। थी गरीबी इस कदर, टपके से भीगा रात भर। न टूटे घर को बना पाया, न गिरने से बचा पाया।। ©Jitendra Mishra बादल घनघोर आये, अम्बर में छा गए। कड़की बिजली जोर से, खूब गरजे खूब बरसे, राजा तो मस्ती में सोये, रंक की नींद उड़ा गये।। टुटा सा घर रंक का, राजा का महल रहा।