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वो हार को हरा कर, जीते को जीता दे वो हार इतनी प्या

वो हार को हरा कर, जीते को जीता दे
वो हार इतनी प्यारी तो नही कही

वो, पी कर समंदर आधा खाली कर दे
वो मुंह इतना नांदा हुआ तो नही कही

वो पकड़ कर कलम, मुझे आसमां में लिख दे
वो खुद की सियाही में अभी जन्मा नही कही

वो पागल होकर समाज में समझदारी कर दे
वो समाज कलयुग का इसके लायक हुआ तो नही कही

मेने जिया है जीकर जो सब होता है वो कुछ नही होता
वो कुछ न होकर भी सब कुछ है, जो खुल के जिया ही सही

©(  prahlad Singh )( feeling writer)
  ऐसा हुआ तो नही कही#Likho

ऐसा हुआ तो नही कहीLikho #Shayari

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