ओंस की बूँद चेहरे पर पड़ रही थी। रोम रोम खिल उठा था उसका ग्रास फूंस के तिनकों को भी बारिश भिगो रही थी... जग डूबा था गहरी निद्रा में चंद्र की स्निग्ध किरणे भी बोझिल सी हो रहीं थीं.. पेड़ पत्ते फूल और मखमली ग्रास के तिनकों पर ,"ओस की बूंदें उनकेचेहरे पर पड़ रही थी.." चूमकर सबको शिशिर मानो कि मोती बो रही थी ..