उसकी आँखों में मैंने दर्द देखा है। उसके ख़्वाबों को मैंने जलते देखा है। फूल सी नाजुक उसकी देह पर, वासना का कहर बरसते देखा है। काठ के उल्लुओं से उम्मीद करें क्या, उनको तो अपनी ही खबर नहीं हैं। कहते कुछ है तो करते कुछ और, अब इनको दर्द कोई बतलाए न। बचपन खो गया समय से पहले ही, जवान हो गया वो ज़िम्मेदार हुआ। बहन भाई का पालन हैं उसको, पिता के समान पर पिता न हुआ। सब कहे कि शील स्त्री का धन है, पुरुषों के मन की पीर कौन कहे। नाजुक तन और कोमल मन पर आघात विषैले कितने हैं सहे। छंद- मुक्तक अलंकार- उपमा (फूल सी नाजुक) रस- करुण मुहावरा- काठ का उल्लू #rzबहुआयामीकाव्य #restzone #rzकाव्यशाला