// कुछ नज़र नही आता था दीवार के उस पार चारदीवारी में बन्द मैं सोचती थी दिन रात // पूरी कविता अनुशीर्षक में खिड़की कुछ नज़र नही आता था दीवार के उस पार चारदीवारी में बन्द मैं सोचती थी दिन रात खिड़की भी नही थी