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वो हरि -भरी इतराती थी, बारिश में झूम जाती थी, वो


वो हरि -भरी इतराती थी,
बारिश में झूम जाती थी,
वो आंगन में क्या खूब लगी,
उसे देख धड़कन में इक आस जगी
तपती धूप में वो उखड़ी -उखड़ी नजर आती हैं,
पानी की बौछार से खिलखिलाती हैं,

उसको नित नित चुमु में,
बस थोड़ा ओर यही सोच के उसके हिफाज़त 
में चारों तरफ घुमू में,

बातें भी करता हैं ये, 
कभी सुकून से बैठ कर एतबार करे ,
जीवन में पेड़ पोधो से जरूर प्यार करे,

मुझे उसका हरा रंग कुछ हद तक लुभाता हैं,
पर सच कहूं यही तो जीवन से मिलाता हैं

वो आंगन कि शोभा बड़ाती हैं,
जब भी पुरवइया इसे छू के जाती हैं,

©jyoti gurjar
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