एक बार फिर समय ने है करवट बदली। पर क्या करूं आदत से मजबूर हूं। हार माननी आती नहीं। जो मुझसे करे हार मानने की बात कोई, अब मेरा उससे कोई नाता नहीं, जहां तुम हार मानते हो, वहां से शुरुआत करना पहचान है मेरी। अब ये पारी मेरे सपनों और अपनो के नाम। ©Akhil Kael #philosophy turned reality