नीति से भ्रष्ट सियासत ने खूबसूरती जन्नते-कश्मीर, और पवित्र पंथनिरपेक्षता निज-कर कर्म से धूमिल कर। एकता, अखण्डता और बंधुत्व को दरकिनार कर दूर हुआ नकाब नापाक राजनीति का। अजीब फितरत इंसान की स्वयं के गुनाह पर वकील पर करे तो फैसला जज का। संसद एक मंदिर था कभी फिर अखाड़े का मैदान और अब जैसे एक मंडी है। इस मंडी में भाव भी मनमर्जी के लगाये जाते है, इंसानियत को मार तमाचा जनमन के भाव मारे जाते है। मेरी चेतावनी गंदी सियासत को जख्म पर मरहम रखा जाता है, कुरेदा नही जाता, ऐसे तो जख्म और गहरा हो जाता है। जख्म को गहरे से कुरेदना तो कुत्सित राजनीति है। एक सवाल देशप्रेमियों! और बुद्धिजीवियों से, खाना चबाते हुये जो आ गयी कभी रसना दांतों के मध्य तो क्या दांतों को तोड़कर मुंह से बाहर फेंक दिया जाये? एक बात और मै एक वैधानिक हिन्दू हूं, इससे पूर्व एक भारतीय भारतीय से पूर्व हूं मैं एक इंसान इंसान को इंसानियत ही चरितार्थ करती है, यह इंसानियत बयां करती है दिलो-दिमाग से अपने तो अपने होते है। पंथनिरपेक्षता की सुरक्षा के लिए आवश्यकता नही हिंदूत्व की, भातृत्व रहे कायम सदा हमें आवश्यकता है बंधुत्व की। अंत में एक निवेदन भारतीय बॉलीवुड बोर्ड से, एक फिल्म और बनाओं उसमे बारीकी से पुलवामा हमला दिखलाओ, आखिर पता तो लगे जनमानस को, कि 350 किलों सक्रिय जखीरा कैसे और कहां से आया❓ जय भारत🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳 ©Anil Ray 👇👇👇👇👇👇 नीति से भ्रष्ट सियासत ने खूबसूरती जन्नते-कश्मीर, और पवित्र पंथनिरपेक्षता निज-कर कर्म से धूमिल कर। एकता, अखण्डता और बंधुत्व को दरकिनार कर दूर हुआ नकाब नापाक राजनीति का।