किसी को देके दिल कोई नवा संज-ए-फुगां क्यों हो, ना हो जब दिल ही सीने में तो मुँह में जबां क्यों हो.. वो अपनी ज़िद न छोड़ेंगे हम अपनी वज़ा क्यों बदलें, सुबुक सर बनके क्या पूछें कि हमसे सरगिरां क्यों हो.. किया गमख़्वार ने रुस्वा लगे आग इस मोहब्बत को, ना लावे ताब जो गम की वो मेरा राजदां क्यों हो.. वफा कैसी कहां का इश्क जब सर फोड़ना ठहरा, तो फिर ऐ संग-दिल तेरा ही संग-ए-आस्तां क्यों हो.. ये कह सकते हो कि हम दिल में नहीं पर ये बतलाओ, कि जब दिल में तुम्हीं तुम हो तो आंखों से निहां क्यों हो.. Mizaj #Quotes #Nojoto #गज़ल_ए_मिज़ाज