#OpenPoetry लिखा था जो भी मैनें ख़त में, वो सारे झूठ थे बहती हवाओं में तेरी खुशबू, चमकते चाँद में तेरी मौजूदगी, वो सारे झूठ थे वो तेरी जुल्फ़ों की शज़र सी ठंढी छावं, वो तेरी गोद में मख़मली एहसास, वो सारे झूठ थे लबों पे संगीत बन तेरा आना, सीने में साँस बन तेरा बस जाना, वो सारे झूठ थे छत पे वो तेरा सुबह की हल्की धूप में जुल्फ़ें सुखाना, मेरे ख्वाबों में आ इस अंदाज में तेरा सताना, वो सारे झूठ थे लिखा था जो भी मैनें ख़त में, वो सारे झूठ थे बंद आँखों से भी तुझे देखना, बंद होंठों से भी तुझे समझ जाना, वो सारे झूठ थे भरी भीड़ में भी तुझे ढूंढ लेना, फूलों के बीच में भी तेरी महक पहचान जाना, वो सारे झूठ थे लिखा था जो भी मैंनें ख़त में, वो सारे झूठ थे वो तेरा नज़रों से दिल को घायल कर जाना, बाद फिर अपनी मीठी बातों का मलहम लगा जाना, वो सारे झूठ थे वादा करके वो तेरा वक़्त पे ना आना, बाद फिर मासूम सा चेहरा बना मुझे मनाना, वो सारे झूठ थे लिखा था जो भी मैनें ख़त में वो सारे झूठ थे वो तेरा मुझसे रूठना, वो तेरा मुझपे बिगड़ना बहोत भाता था मुझे, वो सारे झूठ थे तेरा मेरे रूठने पे वो सताना, वो मुझे छेड़ तेरा भाग जाना बहोत भाता था मुझे, वो सारे झूठ थे लिखा था जो भी मैनें ख़त में वो सारे झूठ थे ! #OpenPoetry झूठा ख़त #abkahnedo