गुब्बारा हूँ ना, उड़ने की आदत है, समंदर की गहराई से उस अम्बर की ऊँचाई तक, कहकशाओं की चादर से सहराओं के कम्बल तक, फ़िर माज़ी के झरने से वर्तमान के सागर तक, अरे यार! ये कैसी आफ़त है? गुब्बारा हूँ ना उड़ने की आदत है। गुब्बारा #yqhindi #yqhindipoetry #yqdidi #yqbaba