मैं बन कर रहना, ज़रा मुश्किल हो गया है। आदमी कई पर्तों में, दाखिल हो गया है। सादगी के कद्रदान, ग़ायब हुए शहर से, दिखावा हर शख़्स का, मुवक्किल हो गया है। झूठों की इस बढ़ती, हुई ज़मात में, हर सच्चा शख़्स, नाकाबिल हो गया है। सच बोलने वालों, रहना ज़रा सम्भल कर, झूठ अब पहले से ज्यादा, संगदिल हो गया है। ©Jupiter and it's moon@प्रतिमा तिवारी मैं और मुखौटा #दिखावा #सच #झूठ #मुखौटा