(दहेज) भाग २ सुनते समझते फिर पिता कहते,आपके सम्मान से पीछे नही हटते और भी जिम्मेदारियां हैं मेरी,हम आपके सामने हैं कहाँ टिकते कर अभिमानी स्वर बोले श्वसुर,जैसे लोभ की प्रतिमूर्ति हो कोई असुर नही क्षमता थी तो क्यों थे आतुर,बहुत समझते थे ख़ुद को चतुर स्वाभिमानी का सर अब था झुका,विनती करते वो तो कभी न थका शब्द पड़ते जैसे तीर कोई विष बुझा,अब अहंकारियों के भाव वो समझा है सम्मान मेरी ,अभिमान मेरी,दुनिया से सच्ची संतान मेरी है सरस्वरती ,लक्ष्मी और काली,जगदम्बा,अन्नपूर्णा वैभवशाली अब चलता हूँ, बहुत हुआ, तेरे दर कदम तो क्या दृष्टि भी वो न डालेगी है शक्तिस्वरूपा,दुर्गा,भवानी घर तेरा कोई बिटीया अब न सम्हालेगी अब जा कर अपनी स्त्री से कैसे नज़र मिला कह पाएगा जैसा सोचा था क्या कोई घर वैसा लाली को मिल पाएगा है ज्ञानी हम सभी इतने इतिहास विज्ञान की विवेचना करते अब समय है अमल करने का जो विचार हम दूसरों पे धरते satyprabha💕 भाग २