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कोई पागल कहता रहा कोई देवदास समझता रहा। नए नए तरी

कोई पागल कहता रहा कोई देवदास समझता रहा।

नए नए तरीकों से वो, जख्मों पर मरहम मलता रहा।

कसूर क्या था, बस इश्क ही तो किया था,

छीनकर मुस्कुराहट,जमाना न जाने क्यों हंसता रहा?

सोने में ही अब गुजर जाते है दिन और रात,

होके गीली आंखें, कागजों पर ही अब दर्द रिस्ता  रहा।

कांटो से सिलकर अपनी मुस्कुराहट को,

बेबसी के आलम में,खुद ही खुद में पिस्ता रहा।

समझाने वाले तो हर मोड़ पर मिले

समझने वाला मिल सके, ऎसा न कोई रास्ता रहा। #drd #love #miss #dairy #poetry #quotes
कोई पागल कहता रहा कोई देवदास समझता रहा।

नए नए तरीकों से वो, जख्मों पर मरहम मलता रहा।

कसूर क्या था, बस इश्क ही तो किया था,

छीनकर मुस्कुराहट,जमाना न जाने क्यों हंसता रहा?

सोने में ही अब गुजर जाते है दिन और रात,

होके गीली आंखें, कागजों पर ही अब दर्द रिस्ता  रहा।

कांटो से सिलकर अपनी मुस्कुराहट को,

बेबसी के आलम में,खुद ही खुद में पिस्ता रहा।

समझाने वाले तो हर मोड़ पर मिले

समझने वाला मिल सके, ऎसा न कोई रास्ता रहा। #drd #love #miss #dairy #poetry #quotes