दिखाऊँ सबको इश्क़ अपना ये ज़रूरी है क्या? रहूँ पर्दे में ही,रूबरू हो जाऊँ ये ज़रूरी है क्या? रूह की मोहब्बत दिखती कहाँ है हर दिन? भरे है बे-ग़ैरत से ज़माने में हरएक लेकिन। मैं भी निर्लज्ज हो जाऊँ ये ज़रूरी है क्या? ऐ ख़ुदा होता ना यकीं मुझे, हरतरफ है छलावा। 'नेहा' बस रहे सूफ़ियत ताउम्र ये रिश्ता हमारा। सुनी पलकों पर सजे है अश्क बनकर एक सितारा! मेरे दिल की दीवार पर बस दस्तक है तुम्हारा। आ जाओ और सजा दो एक दुनियाँ हमारा। ♥️ Challenge-688 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें। ♥️ अन्य नियम एवं निर्देशों के लिए पिन पोस्ट 📌 पढ़ें।