दर्द बे इंतेहा दिल को जलाता रहा इम्तेहानों के दरिया से पार करवाता रहा खिलवाड़ की कहानी सुनकर मिट्टी होता रहा हस्ते रहे लोग मज़ाक दर्द में उड़ता रहा सहन क्या किया ज़ख्म नासूर बनता रहा दिल फेंक आशिक के जनाज़े में मेरा नाम भी शामिल रहा कहीं ज़िंदा कही लाश बन ज़िन्दगी को वाह वाह करता रहा समझे होते दिल के हालात तो कभी किसी की औलाद का दर्द महसूस न होता रहा इबादत ही कर लेते ये काश के मलाल में हजारों आशिक समझता रहा आशिक बनने से पहले औलाद का फ़र्ज़ आता तो करना था ये याद क्यूं ना करता रहा ♥️ Challenge-649 #collabwithकोराकाग़ज़ ♥️ इस पोस्ट को हाईलाइट करना न भूलें :) ♥️ विषय को अपने शब्दों से सजाइए। ♥️ रचना लिखने के बाद इस पोस्ट पर Done काॅमेंट करें।