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याद है तुम्हें इसी पड़े के नीचे हर रोज तुम मेरा इ

याद है तुम्हें इसी पड़े के नीचे हर रोज 
तुम मेरा इंतजार किया करते थे 
बड़ी बेसब्री से तुम्हारी आंखें वह राह ताकती थी 
मेरे आने की ,
मुझे भी इंतजार होती थी अपनी आंखों से 
क्योंकि मुझे भी बेसब्री से इंतजार रहती थी 
तुम्हें वहां देखने की 
तुमने भी मुझे कभी टोका नहीं 
न ही मैंने कभी तुमसे बात करने की हिम्मत  कर पाईं 
वक्त गुजरा हम तुम और भी नजदीक आये  
अब आंखों से ज्यादा इशारों से बात होने लगी 
वक्त ओर गुज़रता गया अब 
हम तुम  इस पेड़ के 
 मोहब्बत के आदी होकर 
युगल बन गये है

©कंचन
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kanchanrajak1414

कंचन

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