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उम्मीदें संभालू या एहसास, इसी कशमकश में हूँ आज, मन

उम्मीदें संभालू या एहसास, इसी कशमकश में हूँ आज,
मन का न हो तो दर्द, रूठे तो बेचैनी, तलाश में हूँ आज।

कैसे रहूँ अनजान,  जानकर भी हर वजह,  हर जज़्बात?
कहूँ तो बेदर्द, सहूँ तो बेफ़िक्र, कैसे लिबास में हूँ आज! 

माँगते थे जो वक़्त, मिलती नहीं है आज उन्हें ही फ़ुर्सत, 
माँगे तो ज़िद न माँगे तो बेदिल, किस ख़ास में हूँ आज! 

कल-आज-कल में बिखरे हैं कितने मासूम एहसासात, 
हँस लूँ तो चुप, टूटूँ तो दूरियाँ, कैसे विश्वास में हूँ आज! 

बढ़ती उलझन को ये नादाँ दिल कैसे सुलझाएगा 'धुन', 
पाए तो वाह न पाए तो आह, किस क़यास में हूँ आज! NAPOWRIMO 

#restzone #rztask337 #rzलेखकसमूह #sangeetapatidar #ehsaasdilsedilkibaat #feelings #उलझन #poetry
उम्मीदें संभालू या एहसास, इसी कशमकश में हूँ आज,
मन का न हो तो दर्द, रूठे तो बेचैनी, तलाश में हूँ आज।

कैसे रहूँ अनजान,  जानकर भी हर वजह,  हर जज़्बात?
कहूँ तो बेदर्द, सहूँ तो बेफ़िक्र, कैसे लिबास में हूँ आज! 

माँगते थे जो वक़्त, मिलती नहीं है आज उन्हें ही फ़ुर्सत, 
माँगे तो ज़िद न माँगे तो बेदिल, किस ख़ास में हूँ आज! 

कल-आज-कल में बिखरे हैं कितने मासूम एहसासात, 
हँस लूँ तो चुप, टूटूँ तो दूरियाँ, कैसे विश्वास में हूँ आज! 

बढ़ती उलझन को ये नादाँ दिल कैसे सुलझाएगा 'धुन', 
पाए तो वाह न पाए तो आह, किस क़यास में हूँ आज! NAPOWRIMO 

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