#OpenPoetry कबसे खड़े हैं इस इंतज़ार में कि बारिश थमे और हम निकलें अपने मकाम की ओर, लेकिन ये असफलताओं की बारिश है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही लेकिन कब तक डरे रहेंगे, थमे रहेंगे भीगने के डर से? ज़रूरी तो नहीं कि बिन भीगे ही पहुँचें मन्ज़िल तक | कभी कभी भीगना पड़ता है असफलताओं की बारिश में मन्ज़िल तक पहुँचने के लिए | क्योंकि अगर भीगेंगे तो मिल भी जायेगी मंज़िल | लेकिन अगर निकलेंगे ही नहीं, सही समय पर, तो कहाँ मिलेगी मंज़िल | शिवम् सिंह सिसौदिया कबसे खड़े हैं इस इंतज़ार में कि बारिश थमे और हम निकलें अपने मकाम की ओर, लेकिन ये असफलताओं की बारिश है कि रुकने का नाम ही नहीं ले रही