मज़बूत दरख़्तों को उखड़ते देखा है भरी बहार में चमन उजड़ते देखा है। बेतरतीब सी ज़िंदगी को यूँही कतरा कतरा बिखरते देखा है । ख़्वाहिश की दौड़ में इंसान को इंसान पर से गुज़रते देखा है। सात जन्म साथ निभाने वालों को बरस भर में बिछड़ते देखा है। खुदगर्ज़ी से ता लुक बनते, टूटते देखे, यूँही पल पल रिश्ते बदलते बिगड़ते देखा है। बदलना वक़्त की फितरत है जनाब,मैंने वक़्त की रफ़्तार से इंसान बदलते देखा है। 🎀 Challenge-250 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। 70 शब्दों में अपनी रचना लिखिए।