हमसे क्या पूछते हो- वृक्ष के पत्तों से सावन का झूला,हमने कब झूला? इन पत्तों से तो बस अपनी झोपडपट्टी बनते देखा है। अनंत बूंदों की बारिश में,भीगना तो अमीरों का काम है,, हमने तो अपने झोपड़ रूपी महल को बाढ़ में डूबते देखा है। सुना है शहरों में कागज़ की नाव बनाते,खेलते,बच्चे स्कूल जाते, हमनें तो खुद को लकड़ी की नैया से रोटी के लिए पार लगाते देखा है। कैसी छतरी?कौन से कपड़े?हमने तो इन्हें बस बाज़ारों में बिकते देखा है, बचपन से मां और बापू के कमजोर बदन को ठण्ड में कपकपाते देखा है। हमसे क्या कुछ पूछते हो साहब जी!! हमने तो मौन रहकर दुखों को सहकर,सुखे होठों पे मुस्कान बनाए रखा है।। #flood Anshula Thakur हिमांशु जगदीश शर्मा