कलाम-ए-नाज़िम कोई दिन आयेगा नाशादगी से शाद भी होंगे ग़मों के क़ैद खाने से कभी आज़ाद भी होंगे मिरा दावा है दुनिया ही में वो बरबाद भी होंगे वसाइल जब तबाही के यहां ईजाद भी होंगे हमेशा एक जैसा वक़्त तो रहता नहीं सबका "हुऐ नाशाद जो इतने तो हम दिलशाद भी होंगे" उधर से बाद मुद्दत के मिरे खत का जवाब आया नहीं सोचा था उसको आज तक हम याद भी होंगे दहल जायेंगे दिल उनके हमारे इक ही नारे से हमारे सामने दुशमन अगर फौलाद भी होंगे किसे मालूम था कि खूब इर्तेदाद फैलेगा हज़ारो मोमिनो के दीन तक बर्बाद भी होंगे भुला डाला जिन्होने अपने आबा के तरीक़ों को यक़ीनन रू सिया उस क़ौम के अफराद भी होंगे भरम टूटा है कुछ ऐसा गुमां से भी जो बाहर था मेरे अपने ही मेरे वास्ते जल्लाद भी होंगे ये नाज़ुक दिल मिरा जिसने दुखाया उम्र भर "नाज़िम" मेरे अशआर उसके रंज की बुनियाद भी होंगे नाज़िम मुरादाबादी✍︎ 9 जनवरी 2022 बरोज़ इतवार मोबाइल +919520326175 ©DrNAZIM AHMAD SHAH #नाज़िम की क़लम से