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#OpenPoetry हर खवाहिश ऐसी के हर खवाहिश पे दम निकले

#OpenPoetry हर खवाहिश ऐसी के हर खवाहिश पे दम निकले 
बहुत निकले मेरे अरमान फिर भी कम निकले 
,,मिरजा गालिब,,

जहा जहा सनम हम निकले 
वहा वहा तुं निकले
हमे शक था निकला मे खाने से जाहिद

अब उममिद ऐसी के मे खामे से हम निकले

निकलना कहा से हे ये समझ ना आया 
हम जहा पे निकले सनम तुम वहा से निकले 

चिखता शायर 
शाहबान 
मलिक चिखता शायर 
लिखता शायर
#OpenPoetry हर खवाहिश ऐसी के हर खवाहिश पे दम निकले 
बहुत निकले मेरे अरमान फिर भी कम निकले 
,,मिरजा गालिब,,

जहा जहा सनम हम निकले 
वहा वहा तुं निकले
हमे शक था निकला मे खाने से जाहिद

अब उममिद ऐसी के मे खामे से हम निकले

निकलना कहा से हे ये समझ ना आया 
हम जहा पे निकले सनम तुम वहा से निकले 

चिखता शायर 
शाहबान 
मलिक चिखता शायर 
लिखता शायर