अगर दे इजाज़त तो मैं तेरे ज़ख्मों पर मरहम होना चाहता हूं, ये जो तुम और मैं हैं मिलकर हम होना चाहता हूं। बसाना चाहता हूं ख़ुद में तुझे, और ख़ुद में से ख़ुद कुछ कम होना चाहता हूं। नज़र से बिस्तर तक नही, मैं रूह का रूह से मिलन चाहता हूं। लेना चाहता हूं धूप में छाव जुल्फों की तेरी, और सर्द में आगोश में खोना चाहता हूं। अगर दे इजाज़त तो मैं तेरे ज़ख्मों पर मरहम होना चाहता हूं, #lovepoem #lovepoetry