मैं शहर के किनारे का झरना लगा प्यास जिसको लगी उसको भरना लगा भीड़ लगती रही यूँ किनारों पे भी ख़्वाहिशों का बड़ा मुझपे धरना लगा मुस्कुराए सभी देके पत्थर मुझे दर्द तुझको ही ना मेरा सरना लगा आकर के ज़ख़्मों को सहला दिया मैं तो बेचैन था तुमने बहला दिया आख़िरी सा पहर ये जो लगता मुझे तुमने छू कर इसे जैसे पहला किया मैं शहर के किनारे का झरना लगा प्यास जिसको लगी उसको भरना लगा भीड़ लगती रही यूँ किनारों पे भी ख़्वाहिशों का बड़ा मुझपे धरना लगा मुस्कुराए सभी देके पत्थर मुझे दर्द तुझको ही ना मेरा सरना लगा