नफ़रत लिखूं या लिखूं प्यार...?
कल्पना लिखूं या मनुष्य व्यवहार...?
जहां चिकित्सकों पर चल रहीं लाठियां
और महामारी का आगमन बना है त्योहार।।
जहां लोग धर्म के नाम पर वैमनस्य पैदा करवाते हैं,
फिर एकता दिखाने के लिए दीप जलाते हैं;
जहां "मूत्र" स्वर्ण समान होकर भी ग्वालों को कुछ नहीं देती;