पल्लव की डायरी वर्तमान में जीने के लिये खुद हम खप रहे है सुख सुविधा के लिये जीवन चुक रहे है अतीतो में भले संसाधन कम थे घड़े का पानी,हाथ के पंखे थे सन्तोष जीवन के हर क्षण थे परिवारों में हर रिश्ते मौजूद एक छत के नीचे ताऊ चाचा के घर थे समाज के संरक्षण में हित मौजूद थे गरीबी गरीबी का ना शोर दो टाइम की रोटी के लिये सब मदद के लिये खड़े थे अतीतो के दिन कितने भले थे प्रवीण जैन पल्लव ©Praveen Jain "पल्लव" #Pastdays अतीतो के दिन कितने भले थे