ज़िन्दगी के क़रीब ले आती है मुझे, तेरे इश्क़ की आहट, इत्र से महक उठते लम्हे, होती है जब मिलने की चाहत। तुम्हारे छोटे-छोटे ख़यालों से, ख़्वाब बड़े-बड़े सजाती हूँ, तुम्हारी इन मुस्कुराहटों में ही छुपी है मेरे ग़मों की राहत। आहिस्ता-आहिस्ता बातें बहुत करती हैं ये यादें तुम्हारी, इनकी ख़ामोशियाँ, फिर बनती है मेरे दिल की आफ़त। सोच इधर-उधर की दिमाग़ माने भी, दिल मानता नहीं, उसे बहलाना मुश्क़िल, फिर आती जैसे सबकी शामत। काग़ज़ काले कर-कर के, अब ख़ुद को समझाओ 'धुन', उन्हें याद आने से रहे,अब बनाये रखो इसी को आदत। 🎀 Challenge-415 #collabwithकोराकाग़ज़ 🎀 यह व्यक्तिगत रचना वाला विषय है। 🎀 कृपया अपनी रचना का Font छोटा रखिए ऐसा करने से वालपेपर खराब नहीं लगता और रचना भी अच्छी दिखती है। 🎀 विषय वाले शब्द आपकी रचना में होना अनिवार्य नहीं है। अपने शब्दों में अपनी रचना लिखिए।