कविता मिटाने से नहीं मिटती है दिल की आशा दिल में जगी थी जो प्रेम की अभिलाषा मैं गुलाबों पर मंडराता था कभी-कभी गुलाबों ने हँस कर गले न लगाया कभी बाग़ों में जो आम का मंजर खिला था झुमती हवा में मनमोहक सुगंध फैली थी ऐसी मदमाती यौवन में मुझको मिली थी तू मेरे समक्ष ठहर कर क्या सोच रही थी तेरे-मेरे प्रेम अंकुरण की यही घड़ी थी क्या-क्या न शरारत सिखाती है पँछी, हवा गुजरूँ तेरी गली से तुझको बुलाती है हवा पँछी भी सुर में गाते हैं प्यार भरा नग़मा हवा भी दिल को छू कर जगाती है आशा #बज़्म