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खत जो लिखा मैंने इंसानियत के पते पे ....... डाक

खत जो लिखा मैंने
 इंसानियत के पते पे .......

 डाकिया ही चल बसा
 वो शहर ढूंढते-ढूंढते....... #by unknown
खत जो लिखा मैंने
 इंसानियत के पते पे .......

 डाकिया ही चल बसा
 वो शहर ढूंढते-ढूंढते....... #by unknown