हर रोज रात को बैठ में ये ही सोचा करता हूँ, के प्यासी इस धरती की प्यास बुझाने, ना जाने बादल कब इस धरती पर आएगा, और ये पतझड़ का मौसम, ना जाने सावन में बदल कीचड़ में कमल कब कुम्भलायेगा, लहराएगी मेरी कलम इस कदर कागज पर एक दिन, और आस्मा का रंग भी बदल जायेगा, कवि की आरजू सुन सावन में रवि, इंद्रा धनुष बन नित कई कई रंग दिख लायेगा. ✍️✍️✍️ "Written:- By @ Umesh Kumar" #कीचड़ में कमल कब कुम्भलायेगा