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रात ढलती रही दिन निकलता रहा सिलसिला तेरी यादो का

रात ढलती रही दिन निकलता रहा 
सिलसिला तेरी यादो का चलता रहा

बेवफा से वफा की तमन्ना रही 
दिल का अरमान दिल में मचलता रहा

आतिश ए बदगुमानी न जब तक बुझी 
वो भी जलता रहा मैं भी जलता रह

यू तो कहने को इक दिया था मगर 
शब की तारीकियों को निगलता रहा

हकबयानी की रमजानी सजा में मिली 
मैं जमाने की नजरों में खलता रहा
12/10/15

©MSA RAMZANI गजल
रात ढलती रही दिन निकलता रहा 
सिलसिला तेरी यादो का चलता रहा

बेवफा से वफा की तमन्ना रही 
दिल का अरमान दिल में मचलता रहा

आतिश ए बदगुमानी न जब तक बुझी 
वो भी जलता रहा मैं भी जलता रह

यू तो कहने को इक दिया था मगर 
शब की तारीकियों को निगलता रहा

हकबयानी की रमजानी सजा में मिली 
मैं जमाने की नजरों में खलता रहा
12/10/15

©MSA RAMZANI गजल
mohdsamshadali7461

MSA RAMZANI

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