अफवाहे अफ़वाहों के पैर नही होते। न ही इनके पंख होते हैं। पर ये लगातार दौड़ती रहती हैं। उड़ती हैं, हवा की चाल से। या फिर हवा से भी तेज। व्हाट्सएप, फेसबुक के सहारे। बेवजह, बेहिसाब, बेमतलब, बातें करने वालों के मार्फ़त। फॉरवर्ड , शेयर होते होते। इस मुँह से उस कान तक। अफवाहे निकल जाती हैं आँख बंद कर छोड़े गये, नुकीले तीरों की माफिक। और लग जाती हैं, हमेशा अनजान बेनाम तुक्के पर । @suresh अफवाहे