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अभिमान का जाना ही विनम्रता का आना है। सुख-दु:ख की

अभिमान का जाना ही विनम्रता का आना है।
सुख-दु:ख की समझ भी तभी आती है।
प्रायश्चित से मन की चिति या पुनर्निर्माण होने लगता है।
तभी व्यक्ति ईश्वर के प्रति विश्वस्त भी होता है।
उससे क्षमा भी मांगता है।
यही चेतना का जागरण है।
यही कर्ता भाव का समर्पण है।
 #dsuyal
अभिमान का जाना ही विनम्रता का आना है।
सुख-दु:ख की समझ भी तभी आती है।
प्रायश्चित से मन की चिति या पुनर्निर्माण होने लगता है।
तभी व्यक्ति ईश्वर के प्रति विश्वस्त भी होता है।
उससे क्षमा भी मांगता है।
यही चेतना का जागरण है।
यही कर्ता भाव का समर्पण है।
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