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रूह थर्रा उठी लब कंपकंपाने लगे जमीं हिल उठी पाँव ड

रूह थर्रा उठी लब कंपकंपाने लगे
जमीं हिल उठी पाँव डगमगाने लगे!

जैसे हो आसमाँ से बिजली कड़की 
भौहें चढ़ गई सब तेवर दिखाने लगे!

इक से इक नकाबपोश दिखाई पड़े
एक दूसरे को वो आईना दिखाने लगे!

मुझे जान से मारने की धमकियाँ हैं
हर हद आजमा के मुझे डराने लगे!

ये इश्क़ या जंग की दास्ताँ नहीं कोई
ये दौर है लोग आवाज़ से घबराने लगे!

मैंने जुबाँ खोली सच कहने लगा तो
लोग महफ़िल ही छोड़ कर जाने लगे!!
                                    ©बृजेन्द्र 'बावरा' #RDV19 #bawraspoetry #aawaaj #NojotoUrdu  Satyaprem Upadhyay Internet Jockey Vallika Poet Dr Ashish_Vats Mukund Mohan
रूह थर्रा उठी लब कंपकंपाने लगे
जमीं हिल उठी पाँव डगमगाने लगे!

जैसे हो आसमाँ से बिजली कड़की 
भौहें चढ़ गई सब तेवर दिखाने लगे!

इक से इक नकाबपोश दिखाई पड़े
एक दूसरे को वो आईना दिखाने लगे!

मुझे जान से मारने की धमकियाँ हैं
हर हद आजमा के मुझे डराने लगे!

ये इश्क़ या जंग की दास्ताँ नहीं कोई
ये दौर है लोग आवाज़ से घबराने लगे!

मैंने जुबाँ खोली सच कहने लगा तो
लोग महफ़िल ही छोड़ कर जाने लगे!!
                                    ©बृजेन्द्र 'बावरा' #RDV19 #bawraspoetry #aawaaj #NojotoUrdu  Satyaprem Upadhyay Internet Jockey Vallika Poet Dr Ashish_Vats Mukund Mohan