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साँवरिया! कुछ ऐसी तान सुना दे, मन में सोयी, राधिक

साँवरिया! कुछ ऐसी तान सुना दे, 
मन में सोयी, राधिका को जगा दे।
प्रेम-रूपी ईश्वर से, रहो मेरे मन में, 
रौशनी से, छाए अँधेरे को मिटा दे। 

दुनिया का मोह छोड़, तेरी हो रहूँ, 
तू ही है मेरा संसार, सबसे मैं कहूँ।
देकर अपने चरणों में मुझे जगह, 
अपनी राह अब मुझको दिखा दे। 

खोके सुध-बुध मैं तेरे पीछे आऊँ, 
ढाई-आखर में, मैं रच-बस जाऊँ, 
तेरी चाहत के सिवा कुछ चाहूँ ना, 
तेरा होकर रहने का राज़ बता दे। 

गढ़ ये भाग्य अपनी प्रेम-शैली से, 
जन्म-मृत्यु पाठ लगते, पहेली से। 
तेरी बाँसुरी का सुर बन सके 'धुन', 
ऐसी एक सरगम, उसको सिखा दे। Rest Zone 'काव्य पुनःनिर्माण'

साँवरिया कुछ ऐसी तान सुना दे,
मन में सोई राधिका को जगा दे। 
उर व्याकुल ना हो मेरा कभी भी, 
मन में मेरे वृंदावन को बसा दे।

नित्य सुनूँ मैं ये मंजुल मधुर तान,
साँवरिया! कुछ ऐसी तान सुना दे, 
मन में सोयी, राधिका को जगा दे।
प्रेम-रूपी ईश्वर से, रहो मेरे मन में, 
रौशनी से, छाए अँधेरे को मिटा दे। 

दुनिया का मोह छोड़, तेरी हो रहूँ, 
तू ही है मेरा संसार, सबसे मैं कहूँ।
देकर अपने चरणों में मुझे जगह, 
अपनी राह अब मुझको दिखा दे। 

खोके सुध-बुध मैं तेरे पीछे आऊँ, 
ढाई-आखर में, मैं रच-बस जाऊँ, 
तेरी चाहत के सिवा कुछ चाहूँ ना, 
तेरा होकर रहने का राज़ बता दे। 

गढ़ ये भाग्य अपनी प्रेम-शैली से, 
जन्म-मृत्यु पाठ लगते, पहेली से। 
तेरी बाँसुरी का सुर बन सके 'धुन', 
ऐसी एक सरगम, उसको सिखा दे। Rest Zone 'काव्य पुनःनिर्माण'

साँवरिया कुछ ऐसी तान सुना दे,
मन में सोई राधिका को जगा दे। 
उर व्याकुल ना हो मेरा कभी भी, 
मन में मेरे वृंदावन को बसा दे।

नित्य सुनूँ मैं ये मंजुल मधुर तान,