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तजुर्बे ज़िन्दगी के मुझे, ख़ुद से ही अलग-थलग कर रहे

 तजुर्बे ज़िन्दगी के मुझे,
ख़ुद से ही अलग-थलग कर रहे हैं..!

विश्वास भरोसे जैसे शब्दों से,
हम कुछ यूँ डर रहे हैं..!

उबाल खाता है ख़ून किसी भी धोखे से,
संयम को फिर भी हम मन में धर रहे हैं..!

देती है ज़िन्दगी जीने के कई मौक़े,
हम घुट घुट कर फिर भी मर रहे हैं..!

खुशहाल होनी थी ज़िन्दगी अपने दम पर,
तजुर्बे से आँखे आंसुओं से भर रहे हैं..!

©SHIVA KANT
  #tajurbezindagike