आओ मिलकर फैलाएँ उजियारा। तूम हो दिपक हमसे ये जहाँ सारा।। आओ मिलकर फैलाएँ उजियारा। आओ मिलकर फैलाएँ उजियारा। तूम हो दिपक हम से ये जहाँ सारा।। आओ मिलकर फैलाएँ उजियारा।। धर्म तले भीङ ने क्यों ये हत्या की । धर्म तले भीङ ने क्यों ये हत्या की। इस भीङ ने मानवता को मारा।। तूम हो दिपक हमसे ये जहाँ सारा। आओ मिलकर फैलाएँ उजियारा। आओ मिलकर फैलाएँ उजियारा तूम उलझ जाओगे तो वो मौज ले लेंगे। आपस में लङोगे तो हमें वो सौख लेंगे। लोगो से भारत हमसे हिंदुस्ताँ न्यारा । तुम उपवन और ये गुलिस्ताँ हमारा। आओ मिलकर फैलाए उजियारा। आओ मिलकर फैलाए उजियारा। मजहब ने हमें प्रेम का पाठ सिखाया। फिर क्यों इस हवा को तुमने जहर बनाया? भाईचारे को तूम मत करों किनारा। आओ मिलकर फैलाए उजियारा। तूम हो दिपक हमसे हैं जहाँ सारा। आओ मिलकर फैलाए उजियारा।।। जगजीत सिंह जी के गजल (तुमको देखा तो ये ख्याल आया) के तरन्नुम पर आधारित यह कविता। Shreya Shukla❣