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मैं सहर हूं पहर हूं खामोशी की लहर हूं बिजली हूं बा

मैं सहर हूं पहर हूं खामोशी की लहर हूं
बिजली हूं बादल की गड़गड़ाहट का कहर हूं
जब तक मचती नही हलचल मुझमें
तब तक रहती मैं अलबेली मेहर हूं
जब उठता है तूफान का जलजला 
तो मचाती मैं बरबादी का कहर हूं
दिल में अगर चैन है मुझे नहीं कोई परेशानी है
तब तक मेरा सुकून ही मेरा शहर है
पर जब दुखती है दिल को चुप्पी
तो उगलता आग मेरे तूफान का वो मंजर है
 कैसे कह दूं हर बात
और किससे कह दूं अधूरे जज्बात
जब साथ होकर भी कोई साथ नहीं
वचन देकर भी जब निभाते नही

लम्हा दर लम्हा बस एक सिसक बाकी है
तेरे मेरे साथ होने का अब एक  पहर बाकी है ।

©aditi jain
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