वक़्त का रेत ☆•••☆•••☆•••☆ लाख की कोशिशें, पर ये कम्बखत न ठहरा। वक़्त का रेत मेरे हाथों से फिसलते-फिसलते, फिसला। बिखर गया हर ख़्वाब मेरा,मुझसे न संभला। अपनों ने सीखा है यहाँ, बस अपनों को छ्लना। पल-पल अपमान की ज्वाला में,क्यों जलना? टूटी-फूटी ख्वाहिश लेकर,अब है फिर से आगे बढ़ना। पग-पग पर हैं ठग बैठें, उनसे क्या डरना? सीख लिया है हमनें भी, अब हर-एक चेहरा पढ़ना। #वक़्त का रेत