समय मुश्किल है अभी जाने उसकी बड़ी बड़ी आँखें सब मुश्किल कैसे सहती होंगी ? क्या अब भी चमकती होंगी ! जाकर कुछ तो अंदाज़ा लेकर वापस आओ हनुमत पवन समान... मैं राम नहीं वो सीता नहीं पर प्रेम में क्या मानुष क्या भगवान प्रेम तो सबको माने एक समान... (अनुशीर्षक पढ़ें...) मैं विचलित हूं बहोत इन दिनों कुछ तो कृपा करो हनुमान... राम के प्रेम का ही नहीं मेरे प्रेम का