✍️ जिंदगी ✍️ कई गठरी दु:खों की बांधकर घर से चले थे बड़ी मुश्किल से सिमटे हम जो बिखर के चले थे ✍️✍️ चले उस राह पर जिस पर महज संघर्ष साहिल हम अपने इल्म को इमां को घर करके चले थे ✍️✍️ कई पैरों में थे कांटे कई राहों में थे पत्थर सर्द ऋतु के थपेड़े थे फटे सीने के थे अस्तर ✍️✍️ बोझ नाकामियों का सर नजर थक जाती थी अक्सर यूं ही बदनामियों का डर आह दब जाती थी अक्सर ✍️✍️ चले थे आंधियों में हम विनय दीपक जलाने गुलामी की वो जंजीरें कतल करके चले थे ✍️✍️ उड़े आकाश में पंछी के जैसे मुस्कुराए जहां बैठे वहां तारों के जैसे छिलमिलाए ✍️✍️ वहां तक बांट दे खुशियां जहां तक हाथ जाए हम अपनी नस्ल को ऐसे नस्ल करके चले थे ✍️✍️ जिए जो भी वो मेरी जिंदगी को गुनगुनाए हम अपनी जिंदगी को वो गजल करके चले थे ©writervinayazad ✍️ जिंदगी ✍️ कई गठरी दु:खों की बांधकर घर से चले थे बड़ी मुश्किल से सिमटे हम जो बिखर के चले थे ✍️✍️ चले उस राह पर जिस पर महज संघर्ष साहिल हम अपने इल्म को इमां को घर करके चले थे ✍️✍️ कई पैरों में थे कांटे कई राहों में थे पत्थर